त्वचा का विषय है -
स्पर्श ।
स्पर्श कोमल , कठोर , रुक्ष , स्निग्ध , शीत , उष्ण , लघु और गुरु-भेद आठ प्रकार माना गया है । कठोर एवं मृदु वस्तुओँ का स्पर्शन इन्द्रियोँ को उत्तेजित करता है ; ब्रह्मचर्य पर आघात
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भगवान वेदव्यास जी के पुत्र श्री शुकदेव मुनि ऐसे ही पूर्ण रूपेण मन को वश किये हुए अखण्ड बालब्रह्मचारी थे । वे बचपन से ही अपना गृह त्यागकर विशाल
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जननेँद्रिय , अर्थात् लिँग इंद्री कर्मेँद्रिय है और जिसका कर्म है मूत्र-वीर्य का त्याग तथा मैथुन । यह मैथुन-विषय भोग के पाप-कर्म मेँ प्रवृत करने की महान् अपराधी है । इसके द्वारा जो कामोत्पत्ति
नेत्र संयम ब्रह्मचर्य पालन का प्रथम सोपान है । नेत्र-संयम का अर्थ है -
नेत्र से सुन्दर और आकर्षण वस्तु देखकर भी उस वस्तु मेँ आसक्ति और लालसा उत्पन्न न होने देना । मनुष्य के मन मेँ
मनुष्य के पास दूसरी प्रमुख इन्द्रिय श्रोत ( कान ) है । श्रोत इन्द्रिय का विषय है शब्द । शब्द प्रिय...
जिभ्या का विषय है रस । रस-लोलुप व्यक्ति कभी ब्रह्मचर्य पालन नहीँ कर सकता । मनुष्य की रस-लोलुपता के...
यह गंध के अधीन रहती है , अर्थात् इसे दुर्गँध तनिक भी नहीँ सुहाती और सुगंध पाने के लिए सदैव लालायित...
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