यह गंध के अधीन रहती है , अर्थात् इसे दुर्गँध तनिक भी नहीँ सुहाती और सुगंध पाने के लिए सदैव लालायित रहती है । बुद्धिमान चतुर संत को चाहिए कि वह ज्ञान विचार से इसको समान संयम ( वश ) मेँ रखेँ अर्थात् सुगंध और अपयश दोनोँ को सहे ।
यंत्र विवरण : | |
---|---|
आई॰ पी॰ पता : | 216.73.216.118 |
ब्राउज़र छवि : | ![]() |
ऑपरेटिँग सिस्टम विवरण : | Mozilla/5.0 AppleWebKit/537.36 (KHTML, like Gecko; compatible; ClaudeBot/1.0; +claudebot@anthropic.com) |
आपका देश : | ![]() |
समय तथा तिथि : | 2025-07-12 16:30:23 |
फिडबैक | उपयोग की शर्तेँ |
© 2018 spiritual |