विश्व का रचना करनेवाले वास्विक परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म है ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश नहीँ ।
पूर्ण ब्रह्म को सतपुरूष कहा जाता है । जो प्रकाश स्वरुप है उनका कोई आकार नहीँ परंतु छाया है ।
सतपुरूष के पास कोई शरीर वाले प्राणी ( स्त्री या पुरूष ) नहीँ रहता सिर्फ ज्योति पुँज आत्मायेँ ।
संसार की रचना होने से पहले संसार सतपुरूष मेँ समाया था ।
सतपुरूष की पुत्रोँ का इच्छा हुआ तो अपने ज्योति प्रकाश से
16 पुत्रोँ को उत्पन्न किया ।
ब्रह्म नामक पुत्र ने सतपुरूष से अलग रहने के लिए 70 युग तक तप किया । सतपुरूष ने दर्शन दिये और कहे क्या आवश्यकता है ? ब्रह्म बोले मुझे अलग रहने के लिए अलग स्थान प्रदान करेँ ।
फिर ब्रह्म (काल) ने 70 युग तक तप किये तो कहे अकेले मन नही लगता कुछ जीव को भेजे ।
तो सतपुरूष ने एक स्त्री ( आष्ट्रा , आदि माया , प्रकृति देवी , दुर्गा ) को शब्द शक्ति प्रदान कर भेजे कि ब्रह्म जितने जीव कहेगा उत्पन्न कर देना । काल देखते ही कामुक हो गया आष्ट्रा कहा कि मुझे पुर्ण ब्रह्म ने भेजे है आप जितने कहेगे उत्पन्न कर दुंगा । ब्रह्म एक न मानी और कामुकता की शांति का प्रयास करने लगे तो आष्ट्रा ने उनके मुहँ मेँ समा गयी फिर सतपुरूष से प्रार्थना करने लगी । सहज पुरूष को सतपुरूष भेजे । सहजपुरूष ब्रह्म ( काल ) के पीठ पर एक लात दिये तो आष्ट्रा एवं संसार की उत्पत्ति हुई ।
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