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× सावधानी! इस ब्लॉग पर बहुत भद्दा प्रचार किया जा रहा है इसलिए हमलोग नया वेबसाइट बना लिया हूँ जो 5 सेकण्ड्स में खुलेगा आयुर्वेद, योग, प्राणायाम को अपनाए और स्वस्थ रहें अध्यात्म की राह पर चलने की जरूर प्रयास करें।

:श्रवण संयम



मनुष्य के पास दूसरी प्रमुख इन्द्रिय श्रोत ( काम ) है । श्रोत इन्द्रिय का विषय है शब्द । शब्द प्रिय भी होता है और अप्रिय भी होता है । प्रिय शब्द को सुनकर मनुष्य के मन मेँ राग उत्पन्न होता है और अप्रिय शब्द को सुनकर द्वेष । किन्तु कामोत्तेजक अभद्र शब्द मनुष्य के मन मेँ प्रसुप्त वासना की जागृत कर देता है । अतः ब्रह्मचर्य को अपने कान को हमेशा पवित्र रखना चाहिए । वह जब भी सुने , और पवित्र शब्द ही सुने , और जब कभी प्रसंग आए , तो पवित्र शब्द ही सुनने को तैयार रहे । गन्दी बातोँ का डटकर विरोध करना चाहिए । मन के भीतर और समाज के प्रांगण मेँ भी ।
जो कोई अपनी श्रवणेन्द्रिय को काबू मेँ रखेगा , वही अपनी वागिन्द्रिय अर्थात् मुख को भी काबू मेँ रख सकता है । कान का मुँह से बड़ा संबंध है । हम कान से जो शब्द सुनते हैँ , मुख से उसी का उच्चारण करते है । जैसे भोजपुरी , हिन्दी या अन्य सेक्सी गानेँ को सुनकर आजकल के लड़के एवं नवयुवकोँ वे भी गाने लगते है ।
यह श्रोत्रेँद्रिय काम हमेशा शुभ वचन सुनना चाहती है इसके द्वारा कठोर वचन सुनकर क्रोधाग्नि से चित्त दहकने लगता है , जिससे घोर अशांति हो जाती है ।
साधु को चाहिए कि वह बोल-कुबोल अर्थात् मीठे तथा कडुवे दोनोँ प्रकार के बोल वचनोँ को सम्मान भाव से रह ले और खराब बचनोँ को सहकर उसे भुला जाए या उसे अपने वाणी के द्वारा बाहर न आने दे

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