"यम" योग का प्रथम अंग है । योग सभी के लिए समान है चाहे हिन्दु , मुस्लिम , सिख , ईसाई , यहुदी , जैन आदि हो ।
यम के भी पाँच प्रकार होते हैँ ।
(1.)
अहिँसा :-
अहिँसा का अर्थ है कि सभी को एक जैसा व्यवहार करना । किसी को मानसिक या शारीरिक कष्ट नहीँ पहुचाँना है । किसी प्रकार का हत्या नहीँ करना पूर्ण अहिँसा है ।
(2.) सत्य : -
जो व्यक्ति मन , वचन और कर्म से समान रहेँ जो कुछ भी सुनेँ वह उसी रूप मेँ कहना सत्य है ।
(3.) अस्तेय : -
किसी व्यक्ति का धन , भुमि , संपत्ति या नारी को चुराने का विचार अपने मन मेँ नहीँ लाना या ऐसे वस्तु जो अपने नहीँ अर्जित किया या पुरस्कार स्वरूप प्रदान नहीँ दिया उसे लेने का विचार मन मेँ नहीँ लाना ही अस्तेय है ।
(4.) ब्रह्मचर्य : -
अपने आप सत्य ध्यान मेँ रखते हुए अपने समस्त गुप्तिँन्द्रिँयोँ पर संयम रखना । वाणी और शरीर से यौन सुख प्राप्त नहीँ करना ही ब्रह्मचर्य है । ऐसे तो ब्रह्मचर्य का अर्थ बहुत विस्तृत है । जिसे आप "ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करेँ" मेँ देख पायेँगे ।
(5.) अपरिग्रह : -
अपने आप किसी वस्तु , विषय , को संग्रह मेँ , रक्षा करने मेँ स्वीकार नहीँ करना ।
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