ब्रह्मचर्य एक ऐसा धर्म , जिसकी पवित्रता ,पावनता और स्वाच्छता से कोई इनकार नहीँ कर सकता । विश्व के समस्त धर्मोँ मेँ ब्रह्मचर्य को एक पावन और पवित्र धर्म माना गया है । इसकी चमत्कार से सभी प्रभावित है । जीवन के ऊँचे से ऊँचे ध्येय को प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य से बढ़कर अन्य कोई साधन क्या हो सकता है ? एक सच्चे ब्रह्मचारी मेँ अपार बल अमित शक्ति और प्रचण्ड पराक्रम का भंडार प्रकट हो जाता है । भगवान महावीर के अनुसार वीर्य रक्षण एक शाश्वत धर्म है , ध्रुव है , नित्य है और कभी मिटनेवाला नहीँ है। अतीत काल मेँ अन्नत साधकोँ ने इसकी विशुद्ध साधना के द्वारा सिद्धि की उपलब्धि है , और अन्नत भविष्य मेँ भी अन्नत साधक इस ब्रह्मचर्य की साधना के द्वारा सिद्ध को प्राप्त करेँगेँ । ब्रह्मचर्य , जीवन के भव्य भवन निर्माण की आधारशीला है । जो व्यक्ति विशुद्ध भाव से ब्रह्मचर्य का पालन करता है , वह पूज्योँ का पूज्य बन जाता है । ब्रह्मचारी दीर्घजीवी होता है । उसका शरीर स्वस्थ रहता है , उसका मन प्रसन्न रहता है तथा उनकी बुद्धि भी स्वच्छ एंव पवित्र रहती है । इसलिए बाइबिल मेँ भी एक नही , अनेक स्थानोँ पर व्याभिचार , विषय-वासना और विलासिता आदि दुर्गुणोँ की भत्सर्ना की गई है और इसके विपरीत त्याग , संयम , शील और सदाचार तथा ब्रह्माचर्य के मधुर-मधुर गीत गाए गये है ।
ब्रह्मचर्य पालन से तनबल और आत्मबल बढ़ता है । ब्रह्मचारी पुरुष निर्भीक , सत्साहसी और अप्रमादी होते हैँ । उनमेँ अद्भुत सौन्दर्य , माधुर्य , विलक्षण प्रतिभा , अदम्य उत्साह प्रभृति सभी दैवी गुण कूट-कूट कर भरे रहते हैँ । वे ओजस्वी , तेजस्वी , मनस्वी , वर्चस्वी , यशस्वी और दृढ़निश्चयी होते हैँ ।
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