प्रत्याहार बाहरी स्थूल इंद्रियोँ को विषयोँ ( यहाँ विषय का अर्थ विष के रूप मेँ यौन , क्रोध , लोभ , ममता , तृष्णा , अहंकार , ईर्ष्या आदि को कहा गया ) से विमुख होकर मन को एक चित्त पर स्थिर करना प्रत्याहार है । अर्थात् जहाँ आप कोई कार्य कर रहे है वहाँ आपको की अलावा कुछ सुनाई तथा ध्यान नही हो ।
या आपको विषय से कोई संपर्क नही हो ।
हमारे शरीर मेँ मानसिक क्रिया इस प्रकार होती है :
स्थूल विषयोँ के ज्ञान को लेकर ये स्थूल इंद्रियां कपालगत सूक्ष्म इंद्रियोँ को और सूक्ष्म इंद्रियां मन को देती है , मन बुद्धि को समर्पित करता है । बुद्धि निर्णय करके चित्त को संस्कारोँ के रूप मेँ भेजती । चित्त तक इंद्रियां की पहुँच नही होती । नीँद के समय भी केवल सूक्ष्म इंद्रियोँ के साथ ही मन बुद्धि का व्यापार होता है ।
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