प्राणायाम का अर्थ प्राण का आयाम देने वाले कला है ।
स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर की ओर अग्रसर होने का प्रवेश द्वार है ।
महर्षि पतंजलि के अनुसार " श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद "
अर्थात् प्राण की स्वाभाविक गति श्वास- प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है ।
(1.) श्वास लेना
(2.) श्वास छोड़ना
(3.) कुछ क्षण श्वास को अंदर एवं बाहर रोकना (आंतरिक कुंभक या बाहर कुंभक)
फेफड़े मजबुत होगेँ । मस्तिष्क के विकार दुर होगेँ । प्राणायाम से मन का घनिष्ठ संबंध है । दुनियाँ मेँ होने वाले कोई रोग ऐसा नहीँ है जो प्राणायाम से ठीक नहीँ होगा । इसका लाभ प्रतिदिन स्वच्छ एवं खुले वातावरण मेँ सुबह मेँ करना चाहिए ।
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