नियम पाँच प्रकार के हैँ : -
पवित्रता शौच है । पवित्रता दो प्रकार की होती है , ब्राह्र एवं आंतरिक । मिट्टी , त्रिफला आदि लगाकार पानी से धोकर अंगोँ को शुद्धि होती है । यौन कार्य(sexual desire) , क्रोध , लोभ , मोह , तृष्णा आदि को त्याग कर सत्य , दया , क्षमा , धीरज , नम्रता और विचार आता है ।
संतोष का अर्थ आपके कर्त्वय से जो भी कुछ प्राप्त हो को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना "संतोष" है । या न्यूनाधिक की प्राप्ति पर हर्ष नहीँ करना ।
कुवृत्तियोँ का सदा निवारण करते रहना , हानी , लाभ , निँदा या अपमान से भी अपने बुद्धि का संतुलन नही खोना ही तप है । हिँहा , असत्य , चोरी , व्यभिचार , परिग्रह , विषयोँ मेँ दौड़ने वाली इंद्रियोँ और मन की इच्छा की पूर्ती नहीँ करना तप है ।
अपने निष्ठा के अनुसार विचार और ज्ञान प्राप्ति करने के लिए नित्य नियम से पठन करना , मनन करना , और सत्संग करना स्वाध्याय है ।
नम्रता , बुद्धि , भक्ति विशेष तथा लगन के साथ प्रत्येक कर्म सहित परमात्मा को निर्मल भाव से सानांद समर्पित करना ।
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