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ब्रह्मचर्य का साधारण अर्थ




ब्रह्मचर्य शब्द बड़ा प्यारा है , बड़ा अद्भुत है । इस शब्द मेँ बड़ा राज है , बड़ा रहस्य है । मनुष्य नित्य प्रति जो कुछ भी खाता है और शरीर पर लगता है एवं सूँघता है , वह सब कुछ शरीर मेँ पहुँचकर सबसे पहले उसमेँ से रस बनता है , फिर रस से 5-5 दिनोँ के अन्तर से रूधिर , रूधिर से मांस , मांस से मेद और मेद से अस्थि एवं अस्थि से मज्जा तथा मज्जा से सातवाँ पदार्थ जो सबका सारभुत निचोड़ है , अंत मेँ वीर्य बनता है । स्त्री मेँ यह धातु बनती है उसे रज कहते है । यही वीर्य(रज) जो ब्रह्मचर्य कहलाता है ,ओजस् एवं तेजस् होकर समग्र शरीर मेँ फैल जाता है । इसी को जीवनी शक्ति भी कहते हैँ ।


सुश्रुत के अनुसार ब्रह्मचर्य छ: मंजिलोँ( रस , रक्त , मांस , मेद , हड्डी और मज्जा) से गुजरा हुआ शरीर का वह सारभुत अनमोल पदार्थ है , जिसको अल्प मात्र भी पूणतया तैयार होने मेँ 30 दिन 4 घंटे लगते है । जो आत्मदर्शन कराने मेँ मददगार होता है , जो जीवन मेँ खुशियाँ एवं तन्दुरुस्ती का खजाना भर देता है । जो चेहरे पर तेज , वाणी मेँ ओज और शरीर मेँ उत्साह का एकमात्र कारण है , उसे हम ब्रह्मचर्य कहते हैँ ।

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