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गैस की समस्या

शरीर में गैस की समस्या से आजकल काफी लोग परेशान होते हैं। अगर हमें अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना है तो गैस की समस्या का समाधान जरूरी है। तो क्यों न कुछ आसन करके इस समस्या से मुक्ति पा ली जाए।
आज लोगों में गैस की समस्या आम है। इसे गैस्ट्रिक ट्रबल और वायु गोला जैसे नामों से भी पुकारा जाता है। बार-बार गुदा मार्ग से अपानवायु उत्सजिर्त होना तथा कभी-कभी पेट से अत्यंत र्दुगधित गैस निकालना, डकारें अधिक लेना तथा पेट में गुड़गुड़ाहट होना, इसके मुख्य लक्षण हैं। जिनकी पाचन शक्ति अक्सर खराब रहती है और जो प्राय: कब्ज के शिकार रहते हैं, वे लोग गैस की तकलीफ से परेशान रहते हैं।


गैस बनने के कारण :


रोजी-रोटी के संघर्ष व अन्य कारणों से उत्पन्न तनाव ने आज कई बीमारियों को सामान्य बना दिया है। इनमें से एक पेट में गैस बनना भी है। भागमभाग वाली आज की जिंदगी में खाना-पीना समय पर न होना, समय पर न सोना, पानी की कमी और गर्म पेय पदार्थों की अधिकता भी पेट में अम्ल की मात्र और पाचन व्यवस्था को प्रभावित करती है। इससे रक्त संचार व आंतों की गतिविधि पर भी असर पड़ता है। इस बीमारी के लक्षण में पेट में भारीपन व अस्वस्थता महसूस होती है। मरीज की आंतों की हलचल बढ़ जाती है। पेट के फूलने और अत्यधिक हवा भर जाने का एहसास होता है। कई बार खट्टी डकारें, छाती में बेचैनी, दिल की धड़कन तेज होना, पेट में तेज दर्द, पेशाब की रुकावट, शरीर में गर्मी का अनुभव होना आदि शिकायतें भी हो सकती हैं।


योगाभ्यास से निदान :


हमारी अनेक बीमारियों का केन्द्र हमारा पेट है। सारे रोग पेट से ही शुरू होते हैं। जो खाना हम खाते हैं, उससे रस बनता है। रस से शरीर में रक्त और मांस आदि का निर्माण होता है। परंतु यदि पाचन संस्थान के किसी भी अंग में विकार आ जाएं तो पेट से संबंधित सभी बीमारियां हो जाती हैं। शरीर को निरोगी रखने के लिए प्राचीनकाल से ही योग का उपयोग होता आया है। योग एक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है, जिसका उपयोग केवल निरोगी रहने के लिए ही नहीं, बल्कि रोगों के उपचार के लिए भी होता है। कुछ योगाभ्यास नियमित रूप से करने से पाचन संस्थान संबंधित रोगों का जड़ से निदान हो सकता है। योग शास्त्रों में गैस से संबंधित रोगों से मुक्ति के कई आसनों का वर्णन किया गया है।

इनमें वज्रासन, उत्तानपादासन, सर्वागासन, हलासन, मत्स्यासन, भुजंगासन, शलभासन, मयूरासन, भस्त्रिका प्राणायाम, सूर्यभेदी प्राणायाम, अग्निसार क्रिया, उदर शक्ति विकासक सूक्ष्म व्यायाम आदि प्रमुख हैं।

सर्वागासन विधि :

जमीन पर सीधे लेट जाएं। कमर को उठाते हुए टांगों को भूमि के समांतर रखें। अब दोनों हाथों का सहारा पीठ को दें और धीरे-धीरे पांवों को आकाश की ओर उठा दें। ठोड़ी कंठ कूप में। कंधों से लेकर पांव की उंगलियों तक शरीर एक सीध में रहे और शरीर 90 अंश के कोण तक लाएं। यथासंभव रुकने का प्रयास करें। फिर धीरे-धीरे नीचे आ जाएं। वापस आते कोई झटका नहीं लगे। पहले टांगों को भूमि पर समांतर करें, फिर पांवों को धीरे-धीरे नीचे लाएं। नीचे आते विश्रम करें। अभ्यास होने के बाद इस आसन में कम से कम 2 मिनट तक रुकें।
लाभ:रक्त शुद्धि, मस्तिष्क एवं हृदय, फेफड़ों की पुष्टि के लिए उपयोगी है। यह आसन गैस, टॉन्सिल व गले के रोगों के लिए रामबाण है। नेत्र ज्योति तथा रक्त विकार को दूर करता है, त्वचा रोग ठीक करता है।

विशेष :

हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर, गर्भवती स्त्रियों के लिए वजिर्त है। और इस आसन का अभ्यास सिर्फ एक बार ही करना चाहिए।

उत्तानपादासन :

जमीन पर दरी बिछाकर उस पर पीठ के बल लेट जाइए। दोनों पैरों के पंजे और ऐड़ियों को मिलाकर रखें तथा दोनों हाथ शरीर के दोनों ओर सटाकर सीधा रखें, दोनों पैरों को उठाएं। यथासंभव स्थिति में रहें। इसके बाद पैरों की धीरे-धीरे नीचे लाएं। यह आसन शुरू में लगभग 5 बार करें।

लाभ :

यह आसन कब्ज, गैस, अजीर्ण, बवासीर तथा पेट के अन्य रोगों का नाश करता है। यह आसन खट्टी डकारों, पेट के कीड़े आदि के लिए रामबाण का काम करता है। शरीर का मोटापा भी कम करता है यह आसन।

भुजंगासन विधि :

मुंह नीचे करके पेट के बल लेट जाइए और शरीर को ढीला छोड़ दीजिए। हथेलियों को कंधों और कुहनियों के बीच के स्थान पर जमीन पर रखिए। इसके बाद नाभि से आगे तक के भाग को धीरे-धीरे सांप के फन की तरह उठाइए। पैर की उंगलियों को पीछे की तरफ खींचकर जमीन का स्पर्श कराएं। यथासंभव आसन में रुकें। यह आसन कम से कम चार बार करें।

लाभ :

इस आसन से गर्दन, कंधे, मेरुदंड प्रभावित होते हैं। पीठ, छाती, हृदय, कंधे, गर्दन व पेशियां शक्तिशाली बनती हैं। पेट में गैस, कब्ज आदि में रामबाण का काम करता है।

अग्निसार क्रिया :

सुखासन या पद्मासन की अवस्था में बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर मुद्रा की अवस्था में रखें और सांस छोड़कर पेट को अंदर खींचें और तेजी से 8 से 10 बार छोड़ें और पिचकाएं तथा फिर सीधे होकर गहरी सांस लें। यह क्रिया कम से कम 5 बार करनी चाहिए। इस क्रिया को हमेशा खाली पेट करना चाहिए।

लाभ :

पाचनतंत्र की शक्ति बढ़ाने में लाभदायक है। पुरानी से पुरानी कब्ज और गैस संबंधित रोग यह क्रिया जड़ से मिटा देती है। बढ़ा हुआ पेट भी इससे कम हो जाता है।

विशेष :

अल्सर, हर्निया, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर और गर्भवती स्त्री के लिए यह क्रिया और उपरोक्त भुजंगासन वजिर्त हैं। कृपया इन आसनों का अभ्यास किसी योग्य योग शिक्षक के अधीन ही करें।

प्राकृतिक उपचार :

सर्वप्रथम हमें अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित एवं नियमित बनाना चाहिए। तांबे के बर्तन में रात का रखा पानी सुबह उठकर सबसे पहले सेवन करना चाहिए। भोजन के समय की नियमितता, हल्का सादा भोजन, दो बार अधिक मात्र में भोजन की बजाय कई बार थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिए। सब्जियों में मटर, बीन्स, चना, राजमा खाने से बचना चाहिए। अधिक तेज मिर्च-मसाले, तली हुई चीजें नहीं खानी चाहिए। भोजन चबा-चबाकर खाना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद लेटना नहीं चाहिए। खुली हवा में सैर, हल्का व्यायाम और तनाव दूर करने के लिए हल्की-फुल्की मनोरंजन वाली पुस्तकों को पढ़ना चाहिए। तनावरहित दिनचर्या, संयमित व संतुलित आहार इस अवस्था से बचने का सबसे सरल उपचार है।
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