ब्रह्मचर्य मूलत: संस्कृत भाषा का शब्द है और व्याकरण के अनुसार जब उसका विश्लेषण करते हैँ , तब दो शब्द हमारे सामने आते हैँ - ' ब्रह्म ' और ' चर्य ' । इन दो शब्दोँ से मिलकर एक ' ब्रह्मचर्य ' शब्द बना है । ' ब्रह्म ' का अर्थ है - शुद्ध आत्म भाव ; और 'चर्य' का अर्थ है - गति करना । 'ब्रह्म' की ओर चर्या करना , गति करना या चलना ब्रह्मचर्य है । मतलब यह कि ब्रह्म के लिए , परमात्म भाव के लिए चलना , गति करना . उस ओर उन्मुख(अग्रसर) होना , उसके लिए साधना करना , ईश्वरीय आचरण व दिव्य आचरण करना यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है ।
यंत्र विवरण : | |
---|---|
आई॰ पी॰ पता : | 3.145.2.184 |
ब्राउज़र छवि : | |
ऑपरेटिँग सिस्टम विवरण : | Mozilla/5.0 AppleWebKit/537.36 (KHTML, like Gecko; compatible; ClaudeBot/1.0; +claudebot@anthropic.com) |
आपका देश : | |
समय तथा तिथि : | 2024-05-02 06:02:46 |
फिडबैक | उपयोग की शर्तेँ |
© 2018 spiritual |