तीनोँ पुत्रोँ की उत्पत्ति के बाद ब्रह्म ने अपनी पत्नि दुर्गा से कहा "मैँ प्रतिज्ञा करता हुँ कि भविष्य मेँ मैँ किसी को अपने वास्तविक रूप मेँ दर्शन नहीँ दुंगा । जिस कारण मैँ अव्यक्त माना जाऊँगा ।"
दुर्गा ने पुछा आप अपने पुत्रोँ को भी दर्शन नहीँ दोगे ? ब्रह्म ने कहा मैँ अपने पुत्रोँ को तथा अन्य को किसी भी साधना से दर्शन नहीँ दुंगा , यह मेरा अटल नियम रहेगा । दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम नियम नहीँ है जो आप संतान से भी छुपे रहोगे ।
तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है । मुझे 1 लाख जीव का आहार करने का शाप लगा है । अगर मेरे पुत्रोँ ( ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश ) को पता लग गया तो ये उत्पत्ति , स्थिति तथा संहार का कार्य नहीँ करेँगे ।
जब तीनोँ बच्चे युवा हो गए तब माता भवानी ने कहा कि तुम सागर मंथन करो । प्रथम बार सागर मंथन किया तो ( निरंजन ने अपने श्वांसोँ द्वारा चार वेद उत्पन्न किये । उनको गुप्त वाणी द्वारा आज्ञा दी कि सागर निवास करो ) चारोँ वेद निकले वह ब्रह्मा ने लिए ।
तीनोँ बच्चे माता के पास आए तब माता ने कहा कि चारोँ वेदोँ को ब्रह्मा रखे व पढ़े ।
नोट :
वास्तव मेँ पूर्णब्रह्म ने , ब्रह्म अर्थात् काल को 5 वेद प्रदान किए थे । लेकिन ब्रह्म केवल 4 वेद उत्पन्न किया ।
"पाँचवा वेद"
छुपा दिया ।
जो पुर्णब्रह्म परमात्मा ने स्वयं प्रकट होकर
"कबीर वाणी"
द्वारा लोकोक्तियोँ व दोहोँ के माध्यम से प्रकट किया है ।
दुसरी बार सागर मंथन किया तो 3 कन्याऐँ मिली । माता ने तीनोँ को बांट दिया । ब्रह्मा को सवित्री , विष्णु को लक्ष्मी एवं पार्वती , शंकर को ।
तीसरी बार सागर मंथन किया तो 14 रत्न ब्रह्मा को , विष्णु को अमृत तथा देवताओँ को , मद्य असुरोँ को तथा विष परमार्थ शिव ने अपने कंठ मेँ ठहराया ।
जब ब्रह्मा वेद पढ़ने लगा तो पता चला कि कोई सर्व ब्रह्मांडोँ की रचना करनेवाला कुल का मालिक पुरूष और है । तब जी ने विष्णु जी व शंकर जी को बताया कि वेदोँ मेँ वर्णन है कि सृजनहार कोई और प्रभु हैँ परंतु वेद कहते कि भेद हम भी नहीँ जानते ,उसके लिए संकेत है कि किसी तत्वदर्शी संत से पुछा । तब ब्रह्मा माता के पास आया और सब वृतांत कह सुनाया । तो माता कही आपकी पिता दर्शन नहीँ देगा तो तुम क्या करोगे ?
ब्रह्मा ने कहा कि मैँ आपको शक्ल नहीँ दिखाऊँगा ।
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