जब ब्रह्म ( काल ) तप कर रहा था । हम सभी आत्माएं , जो आज काल के 21 ब्रह्माण्डोँ मेँ रहते हैँ इसकी साधना पर आसक्त हो गए तथा अंतरात्मा से इसे चाहने लगे । अपने सुखदाई प्रभु सत्यपुरूष से विमुख हो गए । जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए । पूर्ण प्रभु के बार-बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरूष ( काल ) से नहीँ हटी । जब परमपुरूष आष्ट्रा को भेजी तो ब्रह्म आष्ट्रा को बलात्कार करने के आतुर हुआ । आष्ट्रा ने अपने शरीर को सुक्ष्म रूप बनाकर उसके मुहँ मेँ समाकर परमपुरूष से प्रार्थना
किया । पुर्ण ब्रह्म योगजीत के रूप मेँ आकर आष्ट्रा को निकाल । और शाप दिये ब्रह्म आज से आपका नाम काल होगा और प्रतिदिन 1 लाख जीव खायेगा एवं 1.25 लाख उत्पन्न करेगा । आपका एवं आष्ट्रा को 21 ब्रह्मांड सहित निकाल जाता है ।
इस तरह उसके तप पर आसक्त के कारण यहाँ है तथा काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , तृष्णा , ईर्ष्या एवं जलन तथा संसार भेँ अधिक पुजा काल का ही होता है , काल कहता कि हमको पुजने से मोक्ष नहीँ जन्म लेगा और मृत्यु को प्राप्त करोँगे ।
मोक्ष के उपाय :
इस उपाप पर शायद ही 100 मेँ से एक चलते होँगे ।
अहिँसा , दया , क्षमा , शील , विवेक , धीरज , परम विचार , तथा काल के सभी गुण को छोड़े , मांस , मदिरा , अंडा , मच्छली , परस्त्री पर हाथ न डालना , नशा न करना , धुआ न करना तथा आदि कानुन के लिए पढ़े अगले पेज ।
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