ब्रह्मा जी को काललोक मेँ लाख चौरासी के चोले(शरीर) रचने का अर्थात् रजोगुण प्रभावित करके संतान उत्पति के लिए विवश करके संसार को बनाये रखने का विभाग प्रदान किया गया ।
विष्णु जी को इन जीवोँ के पालन पोषण करने , तथा मोह ममता उत्पन्न करके स्थिती को बनाये रखने का विभाग दिये ।
भगवान शंकर को संहार ( दुख , दर्द , रोग , कष्ट आदि ) करने का विभाग प्रदान किया गया ।
उत्पत्ति , स्थिती और संहार की स्थिती अपने दिव्य शक्तियाँ से अपने लोकोँ मेँ रहकर करते हैँ जैसे कि उपग्रह आसमान मेँ छोड़ा जाता है और पृथ्वी पर संचार प्रणाली चलते हैँ ।
उपरोक्त विवरण एक ब्रह्माण्ड मेँ ब्रह्म ( काल ) की रचना का है । ऐसे - ऐसे क्षर पुरूष ( काल ) के 21 ब्रह्माण्ड हैँ ।
दुनियाँ मेँ काल के शिवा और किसी को नहीँ पुजता है इसी कारण दुख भोगता हैं ।
क्योँकि पितर पुजने वाले पितर बनते , श्राद निकालनेवाले पितर बनते , मूर्ती पुजनेवाले मूर्ती बनते , कोई ईश्वर के मूर्ती ( जगदम्बा , दुर्गा , गायत्री , घर का देवता ,काली , सरस्वति , शिवजी , विष्णुजी . ब्रह्म , ब्रह्मा , गणेश , लक्ष्मी , पार्वती आदि ) को पुजा करने से भगवान नहीँ बनेगे क्योँकि ध्यान देँ कि माता दुर्गा शिवजी को मृत्युंजय का वरदान नहीँ दे सकी तो क्या हमको मोक्ष प्राप्त करा देगी ? बिल्कुल नहीँ हमलोग उनकी पुजनेवाले उनके पिँड ही बनेगे । अभी सभी मुक्त है तथा जब पिंड बनेगे तो बंधनयुक्त रहेँगे तो कितना कष्ट होगा । इसका प्रमाण गीता तथा कुरान मेँ भी है । परंतु गीता या धर्म शास्त्र पढ़ते नहीँ और ब्रह्मा जी के शाप के अनुसरन करते है ।
अब इस काल के बंधन से मुक्त होने का उपाय पर विचार करेँ कि क्या करेँ की मैँ इस काल से छुट पायेँ
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